‘‘तेरा धीमे से कुछ कहना’’

परीशाँखातिरी दिल को जुदाई क्यूँ नहीं देता पिघलती आग पर शब-ए-खुदाई क्यूँ नहीं देता। मेरी तन्हाइयों में हर तरफ बिखरा है सन्नाटा तेरा धीमे से कुछ कहना सुनाई क्यूँ नहीं देता। फलक तक बादलों के संग चलती हैं थकी आँखें तुम्हारा झूम कर आना दिखाई क्यूँ नहीं देता। वो तय करता है जिद्दत से सफर … Continue reading ‘‘तेरा धीमे से कुछ कहना’’